Sunday, March 18, 2007

शब्द बोलते हैं



शब्द बोलते हैं
चीखते हैं
चिल्लाते हैं
रोते हैं
सो जाते हैं
अचानक हड़बड़ाकर
जाग भी तो जाते हैं .
लगते हैं .
उठाते हैं .
पहाड़ पे चढ़ाते हैं .
सपाट हो जाते हैं
काँटे बो जाते हैं
चुभते हैं
काटते हैं
सहलाते हैं
सहम जाते हैं
धीमे से फ़ूस फुसाते हैं
शहद घोलते हैं
शब्द बोलते हैं

2 comments:

रंजू भाटिया said...

सचमुच यह शब्द बोल उठे .. ख़ूबसूरत लिखा है

Unknown said...

सचमुच, ये शब्द ही तो हैं जो सब खुद को व्यक्त करने का जरिया बन जाते हैं।