Friday, March 2, 2007

एक दो नहीं पूरे बारह पत्थर

एक मुहल्ले का मिलन स्थल , सभी उमरों की पसंदीदा जगह , चारों तरफ़ से पेड़ों से घिरा और बीच मे एक ख़ूब बड़ा सा मैदान . जिसके अगल बगल होमिओपैथी, एलोपैथी ,तरह तरह के नर्सिंग होम और डॉक्टरी के ढेर सारे खंभे पाए जाते हैं और उनसे निकलने वाला करंट सारे शहर मे मुसलसल दौड़ता रहता है ..दौड़ता रहता है ..हमने सोचा कि क्यों ना इस दौड़ को एक मुकाम दिया जाए जो सीधे उस जगह से शुरू हो जहाँ पर हमने दौड़ना सीखा था . बस यही सोच कर हमने उस मुकाम को नाम दिया बारह पत्थर . यही वो जगह है जहा मुहल्ले का हर बड़ा आदमी जो अब काफ़ी बड़ा हो गया है , कभी बगलों से फटी शर्ट पहन के फ़ुटबॉल खेलने मे कोई शर्म महसूस नही करता था लेकिन पता नही क्यों अब करता है .. ख़ैर ये ब्लॉग नामा इस बात को कुरेदने की क़तई कोशिश नही कर रहा है कि अब वो लोग वहा नज़र क्यों नही आते .. ये तो बस एक याद को संभालने के लिए है जिसे हम सब भूल नही सकते , क्योंकि नगर पालिका की चहारदीवारी से घिरा वो इमली का पेड़ अभी भी है. लेकिन वहाँ जो नही है , वो है वहाँ का मैदान , जिस पर अब मिलेट्री वालों ने क़ब्ज़ा कर लिया है और पूरी तरह से उस मोहल्ले के ही नही बल्कि आस पास के तीन चार ज़िलों के लोग अब उस मैदान से मरहूँ हो गये हैं और इसकी छाया अक्सर पुराने लोगों के चेहरे पर देखी जा सकती है , अब मुहल्ले के बच्चे अपनी अपनी छतों पे खेलते हैं या शायद फिर आर्यकन्या वाले मैदान मे , डंपू तो अपने मैदान मे किसी को खेलने ही नही देता बहुत बदमाश था और अभी भी है .. पता नही उसकी लड़की "शांति" के क्या हाल हैं . जबसे मैदान बंद हुआ तबसे सब लोग मुहल्ले मे ही सिमट गाये हैं . सेंट्रल स्कूल भी कहीं और चला गया है , वही स्कूल जहाँ से गली मे पहली बार गमले चुरा कर लाए गये थे और गली मे एक नये फ़ैशन की शुरुवात हुई थी ... ये बारह पत्थर कभी छूट सकता है क्या ?

10 comments:

Jitendra Chaudhary said...

वाह! वाह!
मजा आ गया भई, पहली पोस्ट ही धांसू लिखे हो। आगे से और उम्मीदें जग गयी।

हिन्दी चिट्ठाकारी(ब्लॉगिंग) मे आपका हार्दिक स्वागत है। किसी भी प्रकार की समस्या के लिए हमसे सम्पर्क किया जा सकता है।

Divine India said...

स्वागत है चिट्ठा जगत में इस सुंदर रचना के द्वारा…
नाम भी काफी अलग है…सहसा ही खिंच गया…जैसे
घुघती बासूती जी के नाम से खिंचा था…। अच्छा लगा यहाँ आकर!!

संजय बेंगाणी said...

स्वागत है आपका.
बहुत खुब लिखा आपने.

Monika (Manya) said...

एक और अलग सा नाम जुङा इस चिट्ठाजगत से.. और सच कहते हैं आप यादों के उन बारह पत्थरों को भूलना बहुत मुश्किल है.. स्वागत है..

अभय तिवारी said...

स्वागत है बन्धु .. अच्छा लिखा .. लिखते रहिये..

Rajeev (राजीव) said...

स्वागत है, हमें भी अब कुछ और देख्ने को मिलेगा बारह पत्थरों की झिर्री से, एक अनोखे दृष्टिकोण से।

उन्मुक्त said...

हिन्दी चिट्ठेजगत में स्वागत है।

Udan Tashtari said...

स्वागत है अपका ब्लागजगत में. निरंतर लेखन के लिये शुभकामनायें.

ePandit said...

हार्दिक स्वागत है आपका, उम्मीद है निरंतर लेखन जारी रहेगा।

गुफरान सिद्दीकी said...

विनोद भाई मज़ा आ गया पुराने दिन याद आ गए एक मैदान नाम बारह पत्थर एक साथ सारे खेल याद हैं क्रिकेट, फुटबाल और वो पतंग्बाजियाँ बचपन की याद दिला दी क्रिकेट का नशा पापा की मार और वो सब कुछ जो हम लोगों ने बारह पत्थर में किया और मै सौभाग्यशाली हूँ की पिछले साल कुंवे के पास वाले छोटे मैदान में काफी अरसे बाद रात में मैच खेलने को मिला !वैसे मैच में झगडे पुरे शहर के लड़कों का जमावडा क्या दिन थे जो हम सभीने जिए बारह पत्थर के साथ अब तो सारे खेल ही यहाँ ख़तम होने की कगार पर पहुँच चुके है ! वैसे बारह पत्थर की बात है तो हम ज़रूर मिले होंगे होप फिर आपसे मिलना होगा !आपके लेख के लिए धन्यवाद

आपका हमवतन भाई गुफरान (बाबला) ghufran.j@gmail.com