Saturday, April 7, 2007

बच्चो को बेईमान बनायें

अभी परसो अखबार मे पढा कि पेप्सी की इंदिरा नुई को भारत सरकार की तरफ से पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया । मैं देखने लगा कि शायद इस लिस्ट मे कही पर सुनीता नारायणन का भी नाम हो लेकिन नही था । जब मैं छोटा था तो मैंने सीखा था कि मारने वाले से बचाने वाला ज्यादा बड़ा होता है । लेकिन अब मैं अपने बच्चों को ये सीख नही देता । उनसे कहता हु कि बेटा , मारा करो लोगो को तभी बडे बन पाओगे । अगर बचाने की बात सोचोगे तो कभी भी इंदिरा नूई नही बन सकते । बड़ा पुरस्कार भी नही पा सकते । अगर पाओगे तो सिर्फ गलियाँ और धमकियाँ । मैं सोचता हूँ कि हमें अपने बच्चो को शुरू से ही बेईमान बनने की ट्रेनिंग देनी चाहिऐ। वो बडे से बडे लम्पट हो , किसी पर दया तो कभी भी ना करें। और अगर कभी गलती से कर भी दें तो उसे अखबार मे जरूर निकलवाएँ। दो चार प्रभावशाली लोगों से उनकी मासूम सी दोस्ती तो जरूर ही होनी चाहिऐ । वो अंकल जी अंकल जी वाली । ताकी गाहे बगाहे हम भी अपना काम निकलवा सकें । सेटिंग मे तो उन्हें हमेशा अव्वल रहना होगा तभी वो कुछ बन सकते हैं । लब्बो लुआब यह कि अगर बच्चों को इंदिरा नूई बनाना है तो उन्हें ते साड़ी ट्रेनिंग तो देनी ही पडेगी । तभी तो नाम होगा । तभी तो कोई पद्म पुरस्कार हाथ मे आएगा।

3 comments:

Reetesh Gupta said...

ह्रदय की पीड़ा और वर्तमान समय के संकट को सच्चाई से प्रस्तुत किया है आपने

Gyan Dutt Pandey said...

इन्दिरा नूई क्या वाकई जोड़-तोड़, सेटिंग और ओढी हुई महानता का परिचायक है?

Arun Arora said...

भाई अब आप को कौन समझा सकता है नुई के साथ पेप्सी है और सुनीता नरायन पेप्सी के साथ पंगे करने वाळी और देश की जनता के बारे मे सोचने वाळी जनता का कया है वो कोई पेप्सी की तरह देने वालो को कुछ दे सकती है क्या